बहादराबाद टोल प्लाजा पर किसानों और पुलिस में भिड़ंत, किसानों ने टोल पर ही शुरू किया अनिश्चितकालीन धरना
हरिद्वार। भारतीय किसान यूनियन (टिकैत गुट) के आह्वान पर गुरुवार को सैकड़ों किसान देहरादून कूच कर रहे थे। किसानों का इरादा राजधानी देहरादून स्थित ऊर्जा भवन का घेराव कर सरकार को अपनी मांगों के प्रति जगाने का था। लेकिन देहरादून पहुंचने से पहले ही हरिद्वार पुलिस ने बहादराबाद टोल प्लाजा पर किसानों का काफिला रोक लिया। इस रोकथाम के दौरान किसानों और पुलिस के बीच जमकर झड़प हो गई। पुलिस ने लाठियां फटकारीं, तो किसानों ने बैरिकेडिंग तोड़ने की कोशिश की। अचानक तनावपूर्ण माहौल में दर्जनभर किसान और कई पुलिसकर्मी घायल हो गए।
किसानों की प्रमुख मांगें
किसान लंबे समय से सरकार से कुछ अहम मांगें कर रहे है, जिनमें—
1. बिजली के स्मार्ट मीटर न लगाए जाएं। ग्रामीण क्षेत्रों में किसान परिवारों का कहना है कि स्मार्ट मीटर गरीब जनता के लिए बोझ साबित होंगे।
2. बिजली बिलों में राहत और बकाया की माफी। किसानों का कहना है कि खेती से होने वाली आय पहले से कम है, ऐसे में बिजली बिल लगातार बढ़ रहे हैं।
3. गन्ने का समर्थन मूल्य बढ़ाया जाए और भुगतान समय पर हो। किसानों का कहना है कि गन्ना उनकी मुख्य फसल है, लेकिन उचित मूल्य और समय पर भुगतान न मिलने से वे आर्थिक संकट में हैं।
4. जंगली जानवरों से फसलों की सुरक्षा। पहाड़ी और तराई क्षेत्रों में बंदर, सुअर और अन्य जंगली जानवरों से फसलों का भारी नुकसान होता है। किसान इसे रोकने के लिए ठोस योजना की मांग कर रहे हैं।
किसानों का आरोप है कि ये मांगें कोई नई नहीं हैं। कई बार प्रशासन और सरकार को ज्ञापन सौंपे गए, आंदोलन हुए, लेकिन अब तक कोई ठोस समाधान नहीं हुआ।
देहात से निकला किसानों का काफिला
गुरुवार सुबह हरिद्वार देहात के विभिन्न गांवों से किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली और वाहनों पर सवार होकर देहरादून की ओर बढ़े। उनके साथ तंबू, टेंट, राशन-पानी, रसोई गैस सिलेंडर तक थे, ताकि लंबा आंदोलन चल सके। किसानों की योजना थी कि ऊर्जा भवन का घेराव करके वहीं धरना शुरू किया जाए।
लेकिन पुलिस ने पहले ही रणनीति बना रखी थी। प्रशासन को आशंका थी कि देहरादून शहर में किसानों के घुसने से जनजीवन प्रभावित होगा और कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है। इसी कारण पुलिस ने बहादराबाद टोल प्लाजा पर भारी फोर्स तैनात की और किसानों को रोक दिया।
झड़प और लाठीचार्ज
जैसे ही किसानों का जत्था टोल प्लाजा पर पहुंचा, पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका। किसान नेता प्रशासन पर भरोसा तोड़ने का आरोप लगाते हुए बैरिकेडिंग हटाने लगे। माहौल अचानक बिगड़ गया और पुलिस को भीड़ को काबू करने के लिए लाठियां फटकारनी पड़ीं।
प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक, टकराव में दर्जनभर किसान घायल हुए। कुछ पुलिसकर्मियों को भी चोटें आईं। घायल किसानों को नजदीकी अस्पताल भेजा गया, जबकि पुलिसकर्मी प्राथमिक उपचार के बाद ड्यूटी पर लौटे।
पुलिस की सफाई
एसपी देहात शेखर सुयाल ने कहा—
“किसानों को रोकने की कोशिश के दौरान धक्का-मुक्की हुई। स्थिति को काबू करने के लिए हल्का बल प्रयोग करना पड़ा। हमारी कोशिश है कि बातचीत के जरिए मामले को सुलझाया जाए और किसानों की आवाज सरकार तक पहुंचाई जाए।”
टोल प्लाजा पर ही धरना
पुलिस की सख्ती से आक्रोशित किसान टोल प्लाजा पर ही धरने पर बैठ गए। उन्होंने नारेबाजी शुरू कर दी और साफ कहा कि यदि उन्हें आगे जाने नहीं दिया जाएगा, तो टोल प्लाजा ही उनका धरना स्थल बनेगा। किसानों का कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, आंदोलन जारी रहेगा।
धरने पर बैठे एक किसान नेता ने कहा—
“हमने कई बार ज्ञापन दिए, लेकिन सरकार ने अनसुना किया। अगर हमें देहरादून नहीं जाने दिया तो यहीं टोल पर अनिश्चितकालीन धरना चलेगा।”
आंदोलन की पृष्ठभूमि
पिछले कई महीनों से किसान संगठन बिजली, गन्ना और जंगली जानवरों की समस्या को लेकर आंदोलनरत हैं। पिछले साल भी किसानों ने हरिद्वार से देहरादून तक पैदल मार्च की चेतावनी दी थी, लेकिन प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद आंदोलन टल गया था। किसानों का कहना है कि इस बार वे पीछे हटने वाले नहीं हैं।
किसानों का ऐलान
किसानों ने साफ किया है कि उनका संघर्ष लंबा चलेगा। यदि सरकार ने जल्द ही उनकी मांगों पर कोई ठोस निर्णय नहीं लिया तो आंदोलन और व्यापक रूप लेगा। उन्होंने चेतावनी दी कि आने वाले दिनों में प्रदेशभर से किसान बहादराबाद टोल प्लाजा पर जुट सकते हैं।
प्रशासन की चिंता
प्रशासन फिलहाल स्थिति पर नजर बनाए हुए है। टोल प्लाजा पर पुलिस बल की अतिरिक्त तैनाती कर दी गई है। अधिकारियों का कहना है कि बातचीत से समाधान निकालने की कोशिश होगी, लेकिन कानून-व्यवस्था बिगड़ने नहीं दी जाएगी।
निष्कर्ष
हरिद्वार के बहादराबाद टोल प्लाजा पर गुरुवार को जो स्थिति बनी, उसने प्रदेश की राजनीति और कानून-व्यवस्था दोनों को झकझोर दिया है। एक तरफ किसान अपनी मांगों को लेकर अडिग हैं, वहीं पुलिस-प्रशासन उन्हें नियंत्रित करने में जुटा है। आने वाले दिनों में यह आंदोलन कितना लंबा और असरदार होगा, यह सरकार के रुख और किसानों की रणनीति पर निर्भर करेगा।